27 October 2017

दिवाली 2018 | दिपावली पूजन तथा लक्ष्मी पूजा मंत्र | Diwali Puja Vidhi in Hindi | Lakshmi Puja Mantra


दिवाली 2018 | दिपावली पूजन तथा लक्ष्मी पूजा मंत्र | Diwali Puja Vidhi in Hindi | Lakshmi Puja Mantra



दीवाली के पर्व पर तथा अन्य किसी भी शुभ दिवस पर माता लक्ष्मी, देवी सरस्वती जी एवं भगवान् गणेशजी की पूजा विशेष विधी से करने से सुख-समृद्धि, बुद्धि तथा धन की प्राप्ति होती है तथा घर में शांति व् प्रगति का वरदान भी प्राप्त होता है।
 
पूजा हेतु पूजन सामग्री
चौकी, लक्ष्मी, सरस्वती व गणेश जी का चित्र या प्रतिमा, रोली, कुमकुम, चावल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, धूप, कपूर, अगरबत्तियां, मिट्टी तथा तांबे के दीपक, रुई, मौलि, नारियल, शहद, दही, गंगाजल, गुड़, धनिया, फल, फूल, जौ, गेहूँ, दूर्वा, चंदन, सिंदूर, घृत, पंचामृत, दूध, मेवा, बताशे, गंगाजल, जनेऊ, पिला वस्त्र, लाल वस्त्र, इत्र, खील, चौकी, कलश, शंख, आसन, थाली, चांदी का सिक्का तथा प्रसाद हेतु मिष्ठान्न
प्रात:काल देवपूजन-
सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। स्नान के पश्चात् मुख्य द्वार पर आम के पत्तों का तोरण बांधे, द्वार के दोनों ओर केले के पत्ते भी लगाएं, तत्पश्चात् देवताओं का आवाहन कर धूप, दीप, नैवेद्य आदि पँचोपचार-विधि से पूजन करें। पूजन में सर्वप्रथम भगवान् श्रीगणेश जी का पूजन करें।
पूजन तैयारी
पूजा में सर्वप्रथम एक चौकी पर पिला वस्त्र बिछा कर उस पर माता लक्ष्मी, देवी सरस्वती व भगवान् गणेश की चित्र या प्रतिमा इस प्रकार विराजमान करें कि उनका मुख पूर्व या पश्चिम दिशा के ओर रहे। यह ध्यान दे की माता लक्ष्मीजी, भगवान् गणेशजी की दाहिनी ओर रहें। पूजनकर्ता मूर्तियों के सामने की तरफ बैठें। कलश को लक्ष्मीजी के पास चावलों पर रखें। नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि नारियल का अग्रभाग दिखाई देता रहे व इसे कलश पर रखें। यह कलश वरुण का प्रतीक माना जाता है।
दो बड़े दीपक ले। एक में घी भरें व दूसरे में तेल। एक दीपक चौकी के दाईं ओर रखें व दूसरा मूर्तियों के चरणों में। इसके अतिरिक्त एक दीपक भगवान् गणेशजी के पास रखें।
मूर्तियों वाली चौकी के सामने छोटी चौकी रखकर उस पर पिला वस्त्र बिछाएं। कलश की ओर एक मुट्ठी चावल से लाल वस्त्र पर नवग्रह की प्रतीक नौ ढेरियां बनाएं। गणेशजी की ओर चावल की सोलह ढेरियां बनाएं। ये सोलह मातृका की प्रतीक हैं। नवग्रह व षोडश मातृका के बीच स्वस्तिक का चिह्न बनाएं।
इसके बीच में सुपारी रखें व चारों कोनों पर चावल की ढेरी। सबसे ऊपर बीचोंबीच ॐ लिखें। छोटी चौकी के सामने तीन थाली व जल भरकर कलश रखें।
थालियों की व्यवस्था
थालियों की निम्नानुसार व्यवस्था करें-
प्रथम थाली- ग्यारह दीपक,
द्वितीय थाली- खील, बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चन्दन का लेप, सिन्दूर, कुंकुम, सुपारी, पान,
तृतीय थाली- फूल, दुर्वा, चावल, लौंग, इलायची, केसर-कपूर, हल्दी-चूने का लेप, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक।
इन थालियों के सामने यजमान बैठे। यजमान के परिवार के सदस्य उनकी बाईं ओर बैठें। कोई आगंतुक हो तो वह आपके या आपके परिवार के सदस्यों के पीछे बैठे।

पूजा की विधि
सर्वप्रथम पवित्रीकरण करें।
हाथ में पूजा के जलपात्र से थोड़ा-सा जल लेकर उसे प्रतिमा के ऊपर यह मंत्र पढ़ते हुए छिड़कें।
ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा।
यः स्मरेत्‌ पुण्डरीकाक्षं स वाह्यभ्यन्तर शुचिः॥

इसके पश्चात् इसी तरह से स्वयं को तथा पूजा की सामग्री को भी इसी तरह जल छिड़ककर पवित्र कर लें।


अब पृथ्वी पर जिस जगह आपने आसन बिछाया है, उस जगह को पवित्र कर लें तथा यह मंत्र का उच्चारण करे-
 पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग ऋषिः सुतलं छन्दः कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥

माता पृथ्वी को प्रणाम करके तथा उनसे क्षमा प्रार्थना करते हुए मंत्र उच्चारण करे-
ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।
त्वं च धारय माता देवि पवित्रं कुरु चासनम्‌॥
पृथिव्यै नमः आधारशक्तये नमः।


अब आचमन करें
पुष्प, चम्मच या अंजुलि से एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए तथा बोलिए-
ॐ केशवाय नमः
तथा दोबारा एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए तथा बोलिए-
ॐ नारायणाय नमः
तथा एक तीसरी बूंद पानी की मुंह में छोड़िए तथा बोलिए-
ॐ वासुदेवाय नमः

इसके पश्यात ॐ हृषिकेशाय नमः कहते हुए हाथों को खोलें तथा अंगूठे के मूल से होंठों को पोंछकर हाथों को धो लें। पुनः तिलक लगाने के प्राणायाम व अंग न्यास आदि करें। आचमन करने से विद्या-तत्व, आत्म-तत्व तथा बुद्धि-तत्व का शोधन हो जाता है तथा तिलक व अंग न्यास से मनुष्य पूजा के लिए पवित्र हो जाता है।

ध्यान व संकल्प विधि
आचमन आदि के पश्चात् आंखें बंद करके मन को स्थिर कीजिए तथा तीन बार गहरी सांस लीजिए अर्थात प्राणायाम कीजिए क्योंकि भगवान के साकार रूप का ध्यान करने के लिए यह आवश्यक है इसके पश्यात पूजा के प्रारंभ में स्वस्तिवाचन किया जाता है। उसके लिए हाथ में पुष्प, अक्षत तथा थोड़ा जल लेकर स्वतिनः इंद्र वेद मंत्रों का उच्चारण करते हुए परम पिता परमात्मा को प्रणाम किया जाता है। इसके पश्यात पूजा का संकल्प किया जाता है। संकल्प हर एक पूजा में प्रधान होता है।
इस पूरी प्रक्रिया के पश्चात् मन को शांत कर आंखें बंद करें तथा लक्ष्मी माता को मन ही मन प्रणाम करें। इसके पश्चात् हाथ में जल लेकर पूजा का संकल्प करें। संकल्प के लिए हाथ में अक्षत, पुष्प तथा जल ले लीजिए। साथ में एक रूपए का सिक्का या यथासंभव धन भी ले लें। इन सब को हाथ में लेकर संकल्प करें कि मैं अमुक व्यक्ति अमुक स्थान व समय पर माता लक्ष्मी, देवी सरस्वती तथा भगवान् गणेशजी की पूजा करने जा रहा हूं, जिससे मुझे शास्त्रोक्त फल प्राप्त हों।

पूजन विधि
सर्वप्रथम भगवान गणेशजी व गौरी का पूजन कीजिए। तत्पश्चात कलश पूजन करें इसके पश्यात नवग्रहों का पूजन कीजिए। हाथ में थोड़ा सा जल, अक्षत तथा पुष्प ले लीजिए तथा नवग्रह स्तोत्र का जाप करे। इसके पश्चात् भगवती षोडश मातृकाओं का पूजन किया जाता है। इन सभी के पूजन के पश्चात् 16 मातृकाओं को गंध, अक्षत व पुष्प प्रदान करते हुए पूजन करें। पूरी प्रक्रिया मौलि लेकर गणपति, माता लक्ष्मी व सरस्वती को अर्पण कर तथा स्वयं के हाथ पर भी बंधवा लें। अब सभी देवी-देवताओं के तिलक लगाकर स्वयं को भी तिलक लगवाएं।
अब आनंदचित्त से निर्भय होकर माता महालक्ष्मी जी की पूजा प्रारंभ करे तथा उनकी प्रतिमा के आगे 7, 11 या 21 दीपक जलाएं। माता को श्रृंगार सामग्री अर्पण करें। माता को भोग लगा कर उनकी आरती करें। श्रीसूक्त, लक्ष्मीसूक्त व कनकधारा स्रोत का पाठ करें। इस तरह से आपकी पूजा पूर्ण होती है।
क्षमा-प्रार्थना करें
पूजा पूर्ण होने के पश्चात् माता से जाने-अनजाने हुए सभी भूलों के लिए क्षमा-प्रार्थना करें। उन्हें कहें-
हे माता, ना मैं आह्वान करना जानता हूँ, ना विसर्जन करना। पूजा-कर्म भी मैं नहीं जानता। हे परमेश्वरि! मुझे क्षमा करो। मन्त्र, क्रिया तथा भक्ति से रहित जो कुछ पूजा मैंने की है, हे देवि! वह मेरी पूजा सम्पूर्ण हो। यथा-सम्भव प्राप्त उपचार-वस्तुओं से मैंने जो यह पूजन किया है, उससे आप भगवती श्रीलक्ष्मी प्रसन्न हों।
दीपमाला प्रज्जवलन विधि
सूर्यास्त के पश्चात् माता लक्ष्मी के समक्ष दीपमाला का प्रज्जवलन करें। घर के मुख्य द्वार पर दीपमाला लगाएं। दीपमाला प्रज्जवलन के समय यह मन्त्र का उच्चारण करें।
शुभं करोतु कल्याणं आरोग्यं सुख सम्पदाम।
शत्रुबुद्धि विनाशाय दीपज्योति नमोस्तुते॥

कृपया ध्यान दे
1- पूजन हेतु परिवार के सभी सदस्य का होना उचित माना गया है। 
2-  माताजी को पुष्प में कमल व गुलाब अति प्रिय है। फल में श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार व सिंघाड़े प्रिय हैं। सुगंध में केवड़ा, गुलाब, चंदन के इत्र का प्रयोग इनकी पूजा में अवश्य करें। अनाज में चावल तथा मिठाई में घर में बनी शुद्धता पूर्ण केसर की मिठाई या हलवा, शिरा का नैवेद्य उपयुक्त है।
3.  प्रकाश के लिए गाय का घी, मूंगफली या तिल्ली का तेल इनको शीघ्र प्रसन्न करता है। अन्य सामग्री में गन्ना, कमल गट्टा, खड़ी हल्दी, बिल्वपत्र, पंचामृत, गंगाजल, ऊन का आसन, रत्न आभूषण, गाय का गोबर, सिंदूर, भोजपत्र का पूजन में उपयोग करना चाहिए।
4- माता लक्ष्मीजी के पूजन की सामग्री आपके अपने सामर्थ्य के अनुसार होना चाहिए। किन्तु लक्ष्मीजी को कुछ वस्तुएँ अत्यंत प्रिय हैं। उनका उपयोग करने से वे शीघ्र प्रसन्न होती हैं। इनका उपयोग करना आवश्यक है। वस्त्र में माता जी का प्रिय वस्त्र लाल-गुलाबी या पीले रंग का रेशमी वस्त्र है।
5- लक्ष्मी माता जी को प्रसन्न करने हेतु, श्रीसूक्त, लक्ष्मीसूक्त व कनकधारा स्रोत का पाठ करे

गणेश जी की आरती

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा, माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
एक दंत दयावंत चार भुजाधारी।
माथे पर तिलक सोहे, मुसे की सवारी।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा, माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
पान चढ़े फूल चढ़े तथा चढ़े मेवा।
लड्डुवन का भोग लगे, संत करे सेवा।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा, माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
अंधन को आंख देत, कोढ़ियन को काया।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया।।
सुर श्याम शरण आये सफल कीजे सेवा।। जय गणेश देवा
जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।

लक्ष्मीजी की आरती

ॐ जय लक्ष्मी माता मैया जय लक्ष्मी माता
तुमको निसदिन सेवत, हर विष्णु विधाता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता....
उमा, रमा, ब्रम्हाणी, तुम जग की माता
सूर्य चद्रंमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता....
दुर्गारूप निरंजन, सुख संपत्ति दाता
जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि सिद्धी धन पाता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता....
तुम ही पाताल निवासनी, तुम ही शुभदाता
कर्मप्रभाव प्रकाशनी, भवनिधि की त्राता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता....
जिस घर तुम रहती हो, ताँहि में हैं सद्गुण आता
सब सभंव हो जाता, मन नहीं घबराता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता....
तुम बिन यज्ञ ना होता, वस्त्र न कोई पाता
खान पान का वैभव, सब तुमसे आता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता....
शुभ गुण मंदिर, सुंदर क्षीरनिधि जाता
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता....
महालक्ष्मी जी की आरती, जो कोई नर गाता
उर आंनद समाता, पाप उतर जाता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता....
स्थिर चर जगत बचावै, कर्म प्रेर ल्याता
तेरा भगत मैया जी की शुभ दृष्टि पाता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता....
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता,
तुमको निसदिन सेवत, हर विष्णु विधाता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता....

 

24 October 2017

लाभ पंचमी 2018 | लाभ पंचमी पूजन तथा पूजा मंत्र | Labh Pancham Puja Vidhi in Hindi


लाभ पंचमी 2017 | लाभ पंचमी पूजन तथा पूजा मंत्र | Labh Pancham Puja Vidhi in Hindi





कार्तिक शुक्ल पंचमी के दिवस सम्पूर्ण भारत में तथा मुख्यतः गुजरात राज्य में लाभ पंचमी का त्यौहार श्रद्धाभाव के साथ मनाया जाता है। इस पर्व को लाभ पंचम, सौभाग्य पंचमी तथा सौभाग्य लाभ पंचमी भी कहा जाता है। यह त्योहार व्यापारियों तथा व्यवसायियों के लिए अत्यंत शुभ माना गया है। कहा जाता है कि इस दिवस भगवान के दर्शन व पूजा करने से व्यवसायियों तथा उनके परिजनों को लाभ तथा अच्छा भाग्य प्राप्त होता है।
लाभ पंचमी के शुभ दिवस पर विशेष मंत्र जाप द्वारा भगवान श्री गणेश तथा भगवान शिव का आवाहन किया जाता हैं, जिससे शुभ फलों की प्राप्ति होती है तथा कार्यक्षेत्र, नौकरी तथा व्यवसाय में समृद्धि प्राप्त होती है।
दोस्तों, आज हम आपको बताएँगे, लाभ पंचमी पूजन तथा भगवान श्री गणेश तथा भगवान शिव का पूजा मंत्र

गुजरात राज्य में अधिकतर दुकान मालिकों तथा व्यापारियों द्वारा दिवाली उत्सव के पश्यात लाभ पंचमी पर अपनी व्यावसायिक गतिविधियों को दोबारा से शुरू किया जाता है। दिवाली के अगले दिवस ही गुजराती नववर्ष मनाया जाता है। अतः गुजरात में, 4 दिनों की छुट्टी के पश्यात, लाभ पंचमी नववर्ष का प्रथम कामकाजी दिवस माना जाता है। इस दिवस व्यापारि गण, नया बही-खाता भी प्रारंभ करते है जिसकी बाईं ओर शुभ तथा दाईं ओर लाभ लिखा जाता है तथा प्रथम पृष्ठ के केंद्र में एक स्वास्तिक को रेखांकित किया जाता हैं।
लाभ पंचमी पूजन विधि
लाभ पंचमी पूजन के दिवस सुबह स्नान इत्यादि से निवृत होकर सूर्य को जलाभिषेक करने का नियम है। उसके पश्यात शुभ मुहूर्त में भगवान शिव व भगवान् गणेश जी की प्रतिमाओं या मूर्ति को स्थापित किया जाता है। श्री गणेश जी को सुपारी पर मौली लपेटकर चावल के अष्टदल पर विराजित किया जाता है। भगवान गणेश जी को चंदन, सिंदूर, अक्षत, फूल, दूर्वा से पूजन करना चाहिए तथा भगवान भोलेनाथ को भस्म, बिल्वपत्र, धतुरा, सफेद वस्त्र अर्पित कर पूजन किया जाता है तथा उसके पश्यात गणेश को मोदक व शिव को दूध के सफेद पकवानों का भोग लगाया जाता है।
श्री गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए यह मन्त्र का जाप करना चाहिए।
गणेश मंत्र
लम्बोदरं महाकायं गजवक्त्रं चतुर्भुजम्।
आवाहयाम्यहं देवं गणेशं सिद्धिदायकम्।।
भगवान् शिव जी को प्रसन्न करने के लिए यह मन्त्र का जाप करना चाहिए।
शिव मंत्र
त्रिनेत्राय नमस्तुभ्यं उमादेहार्धधारिणे।
त्रिशूलधारिणे तुभ्यं भूतानां पतये नम:।।

मंत्र स्मरण के पश्यात भगवान गणेश व शिव की धूप, दीप दिखाकर, आरती करनी चाहिए। द्वार के दोनों ओर स्वस्तिक का चिन्ह बनाये तथा भगवान को अर्पित भोग समस्त परिजनों में वितरित कर के, स्वयं भी ग्रहण कर ले।

भगवान श्रीगणेश तथा महादेव की विधिवत पूजा अर्चना करने से घर-परिवार में सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है तथा व्यापार में सफलता प्राप्त होती हैं।